Dashmularishta : नारी स्वास्थ्य की प्राचीन आयुर्वेदिक सौगात
परिचय
कल्पना कीजिए एक ऐसी अमृततुल्य औषधि की, जो सदियों से भारतीय घर-परिवारों, खासकर महिलाओं की सेहत का एक विश्वसनीय सहारा रही हो। एक ऐसी जड़ी-बूटी आधारित तैयारी, जो न सिर्फ रोगों को ठीक करती हो, बल्कि शरीर को अंदर से मजबूत और स्फूर्तिवान भी बनाती हो। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं ‘Dashmularishta’ की। यह नाम शायद आपने अपनी दादी-नानी के मुंह से सुना होगा, या फिर किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा सलाह के तौर पर। दशमूलारिष्ट कोई नई-नवेली दवा नहीं है; बल्कि यह आयुर्वेद के खजाने में सदियों से सुरक्षित एक बहुमूल्य रत्न है, जिसका मुख्य उद्देश्य है ‘नारी स्वास्थ्य को संपूर्णता प्रदान करना’।

लेकिन क्या Dashmularishta सिर्फ महिलाओं के लिए ही है? जवाब है, नहीं। हालाँकि इसके सबसे प्रमुख लाभ स्त्री रोगों और प्रसूति के बाद की देखभाल में देखे जाते हैं, लेकिन इसके गुण पुरुषों और बुजुर्गों के लिए भी कम फायदेमंद नहीं हैं। यह एक ऐसा अरिष्ट (हेर्बल फर्मेंटेड टॉनिक) है, जो शरीर की प्राकृतिक ऊर्जा यानी ओज को बढ़ाता है और वात दोष को संतुलित करने में मास्टर की भूमिका निभाता है। चलिए, इस लेख के माध्यम से दशमूलारिष्ट की दुनिया में गहराई से उतरते हैं और जानते हैं इसके रहस्य, फायदे, बनाने की विधि और सही इस्तेमाल का तरीका।
Dashmularishta क्या है? एक समझ
सबसे पहले नाम को ही समझ लेते हैं। ‘Dashmularishta’ तीन शब्दों से मिलकर बना है: दश + मूल + अरिष्ट।
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दश: यानी दस।
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मूल: यानी जड़ें।
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अरिष्ट: आयुर्वेद में एक प्रकार की फर्मेंटेड (खमीर उठी हुई) हर्बल तैयारी, जिसमें प्राकृतिक रूप से थोड़ी मात्रा में अल्कोहल बनती है। यह अल्कोहल दवा के गुणों को शरीर में बेहतर तरीके से पहुँचाने का काम करती है।
सीधे शब्दों में कहें तो, Dashmularishta, दस विशेष जड़ी-बूटियों की जड़ों से तैयार किया जाने वाला एक फर्मेंटेड हर्बल टॉनिक है। इसका स्वाद थोड़ा कड़वा-मीठा और सुगंध तीखी होती है। इसका रंग गहरा भूरा या लालिमा लिए हुए होता है। यह केवल एक दवा नहीं, बल्कि एक रसायन (रीजुवेनेटर) और वात संतुलक के रूप में काम करता है।
Dashmularishta बनाने की परंपरागत विधि: एक वैज्ञानिक संगम
आयुर्वेदिक दवाओं की खासियत उनकी जटिल और बेहद सटीक बनाने की विधि में छिपी होती है। Dashmularishta का निर्माण भी एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
1. मुख्य घटक: दस जड़ें (The Ten Roots)
Dashmularishta की धुरी हैं ये दस पौधों की जड़ें। इन्हें दो समूहों में बांटा गया है – बृहत पंचमूल (5 बड़े पेड़ों की जड़ें) और लघु पंचमूल (5 छोटे झाड़ीनुमा पौधों की जड़ें)।
बृहत पंचमूल (5 Major Roots):

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बिल्व (बेल)
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गंभारी
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पाटला
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श्योनाक
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काश्मरी (गंभारी के समान)
लघु पंचमूल (5 Minor Roots):
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बृहती
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कंटकारी (भटकटैया)
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शालपर्णी
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प्रिश्निपर्णी
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गोक्षुरा
इन जड़ों का चुनाव और संयोजन बेहद ही सोच-समझकर किया गया है, जिनका संयुक्त प्रभाव वात दोष पर शक्तिशाली असर दिखाता है।
2. अन्य महत्वपूर्ण घटक:
इन दस जड़ों के अलावा, इसमें और भी कई गौण औषधियाँ मिलाई जाती हैं जैसे अश्वगंधा, शतावरी, पिप्पली, द्राक्षा (मुनक्का), गुड़, शहद, आदि। ये सभी मिलकर इसके गुणों को और बढ़ा देते हैं।
3. निर्माण प्रक्रिया:
सबसे पहले दसों जड़ों का काढ़ा (डिकॉक्शन) तैयार किया जाता है। इस काढ़े में गुड़ और अन्य जड़ी-बूटियों का चूर्ण मिलाया जाता है। फिर इस मिश्रण को एक बड़े बरतन (मिट्टी के बर्तन या स्टेनलेस स्टील) में भरकर, उसमें फर्मेंटेशन शुरू करने के लिए एक स्टार्टर (जैसे पुराना अरिष्ट या अन्य प्राकृतिक पदार्थ) मिलाया जाता है। इस बरतन को अच्छी तरह बंद करके एक निश्चित तापमान पर कई दिनों (लगभग 30-45 दिन) तक रखा जाता है। इस दौरान प्राकृतिक किण्वन की प्रक्रिया होती है, जिसमें अल्कोहल बनती है और जड़ी-बूटियों के सक्रिय तत्व पूरी तरह से मिश्रण में घुल जाते हैं। अंत में, इसे छानकर शीशियों या बोतलों में भर दिया जाता है।
Dashmularishta के प्रमुख स्वास्थ्य लाभ: एक समग्र दृष्टिकोण
दशमूलारिष्ट के फायदे अनेक हैं, लेकिन हम उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बांटकर समझेंगे।
1. स्त्री स्वास्थ्य के लिए वरदान
यह Dashmularishta का सबसे प्रसिद्ध और प्रभावी उपयोग है।
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प्रसवोत्तर देखभाल (Postnatal Care): प्रसव के बाद की अवधि में महिला का शरीर बेहद कमजोर होता है। इस दौरान वात दोष बिगड़ जाता है। Dashmularishta गर्भाशय को सिकुड़ने और अपनी मूल अवस्था में लौटने (Uterine Involution) में मदद करता है। यह प्रसव के बाद होने वाले दर्द, सूजन और कमजोरी को दूर करने में रामबाण का काम करता है। साथ ही, यह स्तनों में दूध का उत्पादन (Lactation) बढ़ाने में भी सहायक है।
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अनियमित मासिक धर्म और दर्द: पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द (Dysmenorrhea), अनियमितता, अत्यधिक या कम रक्तस्राव जैसी समस्याओं में Dashmularishta बहुत लाभकारी है। यह गर्भाशय और प्रजनन अंगों को मजबूत बनाता है।
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मेनोपॉज के लक्षणों में आराम: रजोनिवृत्ति के दौरान हॉट फ्लैशेस, मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन, हड्डियों का कमजोर होना जैसे लक्षणों को कम करने में यह टॉनिक मददगार साबित होता है।
2. वात दोष को संतुलित करना
आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में अधिकतर बीमारियों की जड़ बिगड़ा हुआ वात दोष है। दशमूलारिष्ट एक शक्तिशाली वात-शामक है। यह नसों, जोड़ों और मांसपेशियों पर जमा वात को शांत करता है। इसीलिए, इसका उपयोग निम्नलिखित समस्याओं में किया जाता है:
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गठिया (Arthritis) और जोड़ों का दर्द: यह जोड़ों की सूजन और दर्द को कम करने में प्रभावी है।
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साइटिका (Sciatica): कमर और पैर में होने वाली तेज दर्द में आराम दिलाता है।
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पीठ दर्द और मांसपेशियों में अकड़न।
3. पाचन तंत्र को मजबूत बनाना
Dashmularishta में मौजूद जड़ें पाचन अग्नि को प्रज्वलित करती हैं। यह भूख बढ़ाने, अपच, कब्ज और पेट की गैस जैसी समस्याओं को दूर करने में सहायक है। एक स्वस्थ पाचन तंत्र ही समग्र स्वास्थ्य की नींव है।
4. श्वसन तंत्र के लिए लाभकारी
इसकी कुछ जड़ें, जैसे बिल्व और श्योनाक, श्वसन मार्ग में जमा कफ को ढीला करने और खांसी, दमा जैसी समस्याओं में राहत प्रदान करने का काम करती हैं।
5. सामान्य कमजोरी और थकान दूर करना
Dashmularishta एक उत्कृष्ट टॉनिक है। यह शरीर की ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है, रक्त की गुणवत्ता (रक्तशोधक) में सुधार करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है। बीमारी के बाद की कमजोरी (Convalescence) दूर करने के लिए यह बहुत अच्छा है।
Dashmularishta का सही सेवन विधि और मात्रा

किसी भी आयुर्वेदिक दवा का पूरा लाभ पाने के लिए उसे सही तरीके और सही मात्रा में लेना जरूरी है।
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मात्रा: आमतौर पर वयस्कों के लिए 15-30 मिलीलीटर (लगभग 3-6 चम्मच) की मात्रा सुझाई जाती है। लेकिन यह मात्रा उम्र, स्वास्थ्य स्थिति और चिकित्सक की सलाह के अनुसार अलग-अलग हो सकती है।
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समय: इसे दिन में दो बार, सुबह और शाम खाने के बाद लेना चाहिए।
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अनुपान (साथ में क्या लें): दशमूलारिष्ट को लेने का सबसे अच्छा तरीका है इसे बराबर मात्रा में पानी के साथ मिलाकर पीना। पानी मिलाने से इसकी गर्म तासीर और अल्कोहल की मात्रा कम हो जाती है, जिससे यह ज्यादा प्रभावी और सहनीय बनता है। कभी-कभी चिकित्सक शहद या घी के साथ भी लेने की सलाह दे सकते हैं।
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अवधि: इसे लगातार कम से कम 2-3 महीने तक लेने से स्थायी लाभ मिलते हैं। लेकिन इसकी अवधि किसी योग्य चिकित्सक द्वारा तय की जानी चाहिए।
सावधानियाँ और साइड इफेक्ट्स
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। Dashmularishta अत्यंत गुणकारी है, लेकिन कुछ स्थितियों में सावधानी बरतनी जरूरी है।
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गर्भावस्था: गर्भवती महिलाओं को दशमूलारिष्ट लेने की मनाही है, क्योंकि इसकी कुछ जड़ें गर्भाशय को उत्तेजित कर सकती हैं।
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मधुमेह (Diabetes): इसमें गुड़ मिलाया जाता है, इसलिए मधुमेह के रोगियों को इसे सावधानीपूर्वक और केवल डॉक्टर की सलाह पर ही लेना चाहिए।
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अत्यधिक गर्मी वाले शरीर: जिन लोगों का शरीर पहले से ही बहुत गर्म (पित्त प्रधान) रहता है, उन्हें इसके सेवन से पहले चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
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बच्चे: छोटे बच्चों को बिना डॉक्टरी सलाह के न दें।
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अल्कोहल: इसमें प्राकृतिक रूप से बनी थोड़ी मात्रा में अल्कोहल होती है, इसलिए इसके सेवन के बाद गाड़ी चलाने या भारी मशीनरी संचालित करने से बचें।
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सबसे महत्वपूर्ण: किसी भी गंभीर बीमारी या अन्य दवाओं के सेवन के दौरान इसे लेने से पहले किसी योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. क्या दशमूलारिष्ट सिर्फ महिलाओं के लिए है?
नहीं। हालाँकि इसके सबसे ज्यादा लाभ महिलाओं को मिलते हैं, लेकिन पुरुष भी जोड़ों के दर्द, पीठ दर्द, पाचन संबंधी समस्याओं और सामान्य कमजोरी दूर करने के लिए इसका सेवन कर सकते हैं।
2. क्या दशमूलारिष्ट पीने से नशा होता है?
नहीं। इसमें मौजूद अल्कोहल की मात्रा बहुत कम (5-10%) होती है, जो नशा करने लायक नहीं होती। यह अल्कोहल दवा के गुणों को शरीर में अवशोषित करने का काम करती है। पानी के साथ मिलाकर पीने से यह मात्रा और कम हो जाती है।
3. दशमूलारिष्ट को कितने दिन तक लेना चाहिए?
यह आपकी स्वास्थ्य समस्या की गंभीरता पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर, लगातार 2-3 महीने तक लेने के बाद एक महीने का अंतराल देकर दोबारा शुरू किया जा सकता है। सबसे अच्छा होगा कि आप किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर से अपने लिए सही अवधि जानें।
4. क्या इसे सुबह खाली पेट लिया जा सकता है?
नहीं, दशमूलारिष्ट को हमेशा भोजन के बाद ही लेना चाहिए। खाली पेट लेने से पेट में जलन या अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
5. क्या Dashmularishta वजन बढ़ाता है?
सीधे तौर पर नहीं। यह पाचन को दुरुस्त करके और शरीर की कमजोरी दूर करके भूख बढ़ाता है। अगर आप पौष्टिक आहार लेते हैं, तो यह शरीर को स्वस्थ तरीके से मजबूत बनाने में मदद करता है, मोटापा नहीं।
6. Dashmularishta और दशमूल क्वाथ में क्या अंतर है?
दशमूल क्वाथ एक काढ़ा है, जो दस जड़ों को उबालकर तुरंत बनाया जाता है और ताजा पिया जाता है। यह अधिक तीक्ष्ण और तात्कालिक प्रभाव वाला होता है। जबकि दशमूलारिष्ट एक फर्मेंटेड टॉनिक है, जिसे बनने में महीने लगते हैं। यह अधिक कोमल, टॉनिक प्रभाव वाला और लंबे समय तक इस्तेमाल के लिए उपयुक्त है।
निष्कर्ष
दशमूलारिष्ट आयुर्वेद की वह अनमोल धरोहर है, जो न सिर्फ बीमारी ठीक करती है बल्कि स्वस्थ व्यक्ति को भी अंदर से मजबूत और स्फूर्तिवान बनाए रखने का काम करती है। यह केवल एक “दवा” नहीं, बल्कि एक “संपूर्ण स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक” है, जिस पर हमें गर्व है। हालाँकि, यह याद रखना बेहद जरूरी है कि आयुर्वेदिक होने का मतलब यह नहीं है कि इसे बिना सोचे-समझे इस्तेमाल किया जा सकता है।
किसी भी अन्य चिकित्सा पद्धति की तरह, आयुर्वेद की भी अपनी विज्ञान-आधारित नियमावली है। इसलिए, दशमूलारिष्ट का पूरा लाभ उठाने के लिए इसे योग्य चिकित्सक की सलाह पर, सही मात्रा में, सही अनुपान के साथ और सही अवधि तक ही लें। आइए, हम अपनी इस प्राचीन ज्ञान-सम्पदा को सही ढंग से अपनाएं और एक स्वस्थ, ऊर्जावान और सुखी जीवन की ओर कदम बढ़ाएं।